दारीमेटा *

दारीमेटा गांव के किनारे खड़ी गाय

प्रतीक्षा भरी आंखें टेªन की खिड़कियों पर टिका देती है

गुज़रते हुए चौखटों के बीच

दिन महीने

और

साल

स्थिर हैं

समय झीने प्रवाह में झरता हुआ आगे बढ़ता है

असमंजस और अकुलाहट की तह पूर्ववत् मौजूद

स्वप्नों के बीच पूर्वजन्मों की झालरें हैं

और अनगिनत रिश्तेदार

बरसों से साथ चलने वाली आकांक्षा

अनदेखा बाना धारण करती हुई

कभी यम कभी यक्ष में परिवर्तित होती है

मर्त्यलोक के नियम कानून

वहां

द्युलोक तक नहीं पहुँच पाते

अग्नि ने अभी आकार ग्रहण नहीं किया है

वायु हर पल अंतरिक्ष को

घेर लेने की चेष्टा में रत

देवता अपने पशुओं को हाँक रहे हैं

मनुष्य पूजा का थाल सजाए हुए श्रद्धा से नत

जंगल के बीच कोई छाया थरथराकर

घाटियों की ओर मुड़ जाती है .