गुज़रते हुए पहियों की आवाज़
एक समय घड़ी रचती है
बस्ती की औरत पहली रोटी तवे पर डालती है
कम्पार्टमेंट में बैठे यात्री को
ताज़ी सिकती हुई रोटी की गंध आमंत्रित करती हुई
खिड़की के पार वह एक औरत के हाथों के बारे में सोचता है
स्त्री ट्रेन-यात्रा और यात्रियों के बारे में सोचती है
यात्री
स्त्री के सोच में जन्म लेता है
आदमी के सोच में औरत निर्विघ्न पैठती हुई
दोनोें एक दूसरे को नहीं जानते
वे एक दूसरे के बारे में सोचते हैं
एक उम्र की तरह .