खेल माया का

एक दिन

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एक दिन वह अकेला बैठा

रचता था आकाशों के बीच अवस्थित

अपने संसार के तन्तुओं को

हल्की सुनगुनाहटों के बीच

कौंधती है आवाज निःशब्द बहसों की

कौन ?

कौन कहता है ऐसी अद्भुत कथा

सम्बन्धों की खुरचन सी ठंढी और बेजान

जल की धारा थम गई

नकार दिया उसने बहते जाने का गुण

पूर्ण चैतन्य हवा की संजीवनी लहर वहीं थिर गई

आकाश ने त्याग दिया

अपने विस्तृतता के एकात्म लयित गुण को

कण-कण में वेष्ठित आकाश

सघन अभेद्यता के पार टिका रह गया

निश्चल पड़ा रहा वायु का महमहाता झकोरा

थमी रही नदी की

कठोर अबेद्यता के पार

रुके रहे रीते पात्र

पंचभूतों के धैर्यित गुणों पर हावी

इस अनिश्चित घबड़ाहट और व्यथा से अब

कोई भी कैसे उबर पाएगा

रचनी है एक निर्द्वन्द्वता

सीने के अंदर हिलती रही एक सांस .