लहरों की तलाश में

स्वप्नों के वेश में

मोहमयी रात्रि

उसकी पुतलियों के बीच झिलमिलाती है

प्राण की यात्रा के बीच

बीच के कुछ क्षण प्रेम में लिपटे हुए हैं

उस स्मृति को थामे हुए

बस स्टैंड की भारी भीड़ में

समय उसके पास बिलम जाता है

वर्षों का संयमित ज्वार

अभी आकाश की कोर पर

टकराते ही

लहरांे की शक्ल में टूट जाने वाला है.