वह ईश्वर भी है

स्त्री के भरे-पूरे संसार में

उसका बच्चा परछाईं की तरह साथ चलता है

चट्टान की छांह में कोई एक उज्ज्वल दुपहर

रोटी के टुकड़े को कुतरते हुए

वहां अनन्त सुख धीमी गति से झरता है

सम्पूर्णता के बीच घिरी मां के ठोंठ

हल्की स्मििति की छुअन तले चुप

यात्रा के बीच बस में रॉड पकड़कर खड़ी स्त्री को

कहीं से भी कोई शंका नहीं छूती

उसके साम्राज्य की सीमपा

कंधे से सटकर खड़ी संतान का सिर है

संसार के बहुमूल्यतम भाव के बीच अनन्तता का यह ज्वार

आजन्म चलता है

कभी भी अपने किनारों पर सिर पटकने नहीं आता

ना ही बीच की गहराई में डूबने को आतुर होता है

मां-बच्चे के निर्मल भरपूर संसार में

पुरुष के लिए दरवाज़े की कोई फांक नहीं बचती

जहां से होकर अंदर प्रविष्ट हुआ जा सके

दहलीज़ पर खड़ा पुरुष

तरह-तरह के बिम्ब रचता है

स्त्री की भावनाओं के बाज़ार को सजाता हुआ

तमाम पृथ्वी पर चलती बहसों से निर्लिप्त

स्त्री अपने अंतर की गहन संवेदनाओं के पक्ष में

एक शब्द भी कहना पसंद नहीं करती

स्त्री को उसके जिन प्रतिबिम्बों के सहारे लोग जानते हैं

वहां

वह सिर्फ एक द्रष्टा है

ममत्व की पूर्णता में कहने-सुनने से परे बैठी स्त्री

संसार को परखती हुई

वह ईश्वर भी है .